भ्रष्टाचार, निवारण एवं सुशासन
आधुनिक भारत में
संविधान के माध्यम से सुशासन की अवधारणा को स्वाभाविक वैधता प्रदान की गई है।
सुशासन में विद्यमान अनेक विशेषताएं हैं जैसे कि सहभागिता, विधि का शासन, पारदर्शिता, अनुक्रियाशीलता, आम सहमति, न्याय
संगत,
प्रभावशीलता, जवाबदेही,
इत्यादि। संविधान के अनुच्छेद-21 में स्पष्ट है कि मानव जीवन पषुवत नहीं है और
सम्मान व गरिमा के साथ जीवन यापन करना हमारा अधिकार है और यह मानवाधिकार भी है।
लेकिन यह तभी संभव हो सकता है जब हम एक स्वस्थ, पारदर्शी, सामाजिक, आर्थिक व प्रशासनिक प्रणाली में काम कर रहे हों।
परंतु
भ्रष्टाचार में लिप्त होने की वजह से सुशासन को प्राप्त करना संभव नहीं हो रहा है।
भ्रष्टाचार का संधि विच्छेद - भ्रष्ट + आचार। भ्रष्ट यानी बुरा या बिगड़ा हुआ तथा
आचार का मतलब है आचरण। अर्थात भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है वह आचरण जो किसी भी
प्रकार से अनैतिक और अनुचित हो। व्यक्तिगत फायदे के लिए अपने पद का दुरुपयोग कर आय
से अधिक संपति अर्जित करने को भ्रस्टाचार कहा जा सकता है। भ्रस्टाचार का वर्गीकरन (1)
भव्य या Grand (जिसमें सरकारी नियमों को विकृत कर दिया जाता
है), (2) तुच्छ या Petty (निचले एवं
मध्य स्तर के अधिकारियों द्वारा रोजाना आम जनता को उनके मूलभूत सुविधाओं जैसे चिकित्सीय
उपचार, राशन कार्ड, सब्सिडि, पेंशन, ड्राइविंग लाइसेंस आदि को प्रदान करने के
लिए अपने पद का दुरुपयोग करना) एवं (3) राजनैतिक या Political (सत्ता में बने रहने एवं एकत्रित दौलत और हैसियत को कायम रखने के लिए
राजनैतिक गलियारों में बैठे नेताओं द्वारा नीति, नियम और
कानून में फेरबदल कर अपने लाभ हेतू सरकारी संसाधनों का आवंटन) में किया जा सकता
है।
भ्रष्टाचार के तो वैसे कई कारण हैं परंतु असमानता
और असंतोष सबसे अग्रणी हैं। जब किसी को अभाव के कारण कष्ट होता है तो वह भ्रष्ट
आचरण करने के लिए विवश हो जाता है। विवेकाधिकार के आधार पर किसी को निर्णय लेने का
अधिकार मिलता है। वह एक या दूसरे पक्ष के हित में निर्णय ले सकता है। परन्तु जब यह
विवेकाधिकार वस्तुपरक न होकर दूसरे कारणों के आधार पर इस्तेमाल किया जाता है तब यह
भ्रष्टाचार की श्रेणी में आ जाता है अथवा इसे करने वाला व्यक्ति भ्रष्टाचार को
बढ़ावा देता है। किसी निर्णय को जब कोई शासकीय अधिकारी धन पर अथवा अन्य किसी लालच
के कारण करता है तो वह भ्रष्टाचार का ध्योतक बन जाता है।
पूंजीवादी
व्यवस्था में धीरे धीरे समाज द्विध्रुवीय होता जा रहा है – पहला संचित तो दूसरा वंचित। एक अपनी स्थिति बनाये रखने के
लिए तो दूसरा उस स्थिति में जाने के लिए भ्रष्टाचार का सहारा लेता है। राजनीतिज्ञ, प्रशासनिक अधिकारी, सैनिक अधिकारी, न्यायिक अधिकारी और न्यायाधीश, व्यवसायी, पत्रकार
व मीडिया घरानों के मालिक आदि समाज के सभी वर्गों के लोग भ्रस्टाचार से लाभान्वित होते
हैं। सदा से ही यह माना जाता रहा है कि शक्ति, व्यक्ति को भ्रष्ट बनाती है और असीम शक्ति व्यक्ति को
पूर्णतः भ्रष्ट बनाती है।
भ्रष्टाचार को
खत्म करने की मुहिम में विश्व के सभी देश आज से नहीं बल्कि कई वर्षों से लगे हुए हैं
फिर भी भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म नही किया जा सका है। कुछ देश ऐसे भी हैं जो इस पर
काबू पाने में सफल हुए हैं, लेकिन जड़ से
खत्म करने में असफल रहे हैं। और सत्य भी यही है कि आज के परिवेश में जहां सभी देश
एक-दूसरे पर वाणिज्यिक कारणों से इस हद तक निर्भर हैं कि भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म
कर पाना असंभव है।
ट्रांसपरेंसी
इंटरनेशनल जैसी संस्था जो पूरे दुनिया में भ्रष्टाचार के घटनाओं पर नजर रखती है और
अपने सदस्य देशो में व्याप्त भ्रष्टाचार की तुलनात्मक अध्ययन करती है, वो भी जर्मनी जैसे देश में (जहां उसका
मुख्यालय है) भी भ्रष्टाचार को खत्म करने में सफल नही हुई है। जर्मनी दस सबसे कम
भ्रस्ट देशों की सूची में अभी भी शामिल नही है। जर्मनी का स्थान बरहवें स्थान पर
है। जबकि डेनमार्क, न्यू-ज़ीलैंड,
फ़िनलंड, स्वीडन, नॉर्वे, कनाडा, सिंगापुर आदि जैसे छोटे देश अपने देश में भ्रष्टाचार
को काफी हद तक खत्म करने में बड़े देशों की तुलना में सफल हुए हैं। इन देशों में
भ्रष्टाचार कम होने का श्रेय वहाँ की सरकार और नागरिक को जाता है जिन्होंने अपने
यहाँ हर क्षेत्र में पारदर्शिता और सरकार-नागरिक सहयोग को बढ़ावा दिया है। उनके
यहाँ जो भी जटिल प्रक्रिया थे, उन्हें सरल बनाया गया। नगदी
लेन-देन को कम से कम उपयोग में लाया गया है। स्वीडन विश्व की पहली देश बनने जा रही
हैं जहां नगदी लेन-देन से 100% मुक्त होगी जिससे कालेधन और भ्रष्टाचार पर काबू
पाया जा सकेगा।
भारत
175 देशों की सूची में विश्व के सबसे भ्रष्ट देशों में 85वें स्थान पर है। हमारे यहाँ
सुधार है लेकिन सुधार घोंघे (snail) की गति से हो रहा है। भारत
में सुधार आने में बहुत लंबा समय लगेगा जिसकी मुख्य कारण हमारे यहाँ चुनी गयी सरकारों
में प्रबल इक्छाशक्ति की कमी माना जा सकता है। पिछली 4-5 सरकारें कई राजनीतिक दलों
के सहयोग से बनी हैं। गठबंधन सरकारों की अपनी परिसीमन होती हैं और उन सरकारों के मंत्रिमंडल
के लिए भ्रष्टाचार में कमी लाने से कहीं अधिक महत्व सरकार को पाँच वर्षों तक गद्दीनसीन
रखना था। भारत में उच्च पदों पर बैठे IAS और IPS अधिकारियों की मिलीभगत से ही सरकार में बैठे अधिकांश मंत्रीगण भ्रष्ट आचरण
करने में सफल हो जाते हैं। कालेधन को लेकर पिछले कुछ वर्षों से देश की राजनीतिक दलें
शोरगूल मचा रही हैं। बाबा रामदेव, श्री अन्न हज़ारे जैसे सम्मानीय
लोग भी इस मुद्दे पर लंबे समय से सरकारों की चेतना को जागृत करने में लगे हुए हैं।
पर हासिल क्या हुआ “ढाक के तीन पात”। स्विस बैंक में जमा काले धन को लेकर कई वर्षों
से बात हो रही है। उच्चतम न्यायालय के दबाव में आकर पिछली और वर्तमान सरकार ने इस दिशा
में कुछ काम तो किया है। अगर इस बात में थोड़ी भी तथ्य है कि भारत के नामी-गिरामी लोगों
(जिसमें राजनेताओं भी शामिल हैं) के असीमित पैसे स्विस बैंक में जमा हैं, तो इन सरकारों ने उन व्यक्तियों / कंपनियों को पर्याप्त समय दे दिया था ताकि
समय रहते वो अपना पैसा वहाँ से हटा सकते थे।
भ्रष्टाचार
में कमी लाने की दिशा में सरकार और नागरिकों को साथ-साथ चलना होगा। सिर्फ सरकारी तंत्र
के भरोसे भ्रष्टाचार में कमी नही लायी जा सकती है। नागरिकों को और भी जागरूक बनने की आवश्यकता है। दलालों के माध्यम से नागरिकों को अपना काम नियमों का उल्लंघन करके जल्दी
करवाने की मानसिकता में भी परिवर्तन लाने की जरूरत है। हमें अवश्य ही शूरू में परेशानीयों का सामना करना पड़ सकता है. अगर हम नागरिक रिश्वत देने से मना कर दें तो ये संभव ही नहीं है कि कर्मचारी, अधिकारी, पूलिस, न्यायालय या अन्य कोई भ्रष्टाचार को बढ़ा सके! हम सड़क नियमों का उल्लंघन करते
हैं और यातायात (ट्रेफिक) पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर सरकारी खाते में चालान देने की
बजाए ट्रेफिक पुलिस से समझौता कर लेते हैं। जो पैसे ऐसे हालत में सरकार के खजाने में जाने चाहिए थे, वह ट्रेफिक पुलिस के जेब में चला जाता है।
और यही वजह है कि ट्रेफिक पुलिस भी यातायात के नियमों का सख्ती से पालन नहीं करते हैं
ताकि नागरिक यातायात नियमों का उल्लंघन करें और उनकी ऊपर की कमाई बनी रहे।
हमें इस मानसिकता से बाहर आने की आवश्यकता है। यदि हम भारतीय इन दो माध्यमों (यानि
दलालों और पुलिस) से व्याप्त भ्रष्टाचार पर ही काबू पाने में सफल हो जाएँ तो भारत से
तकरीबन आधे भ्रष्टाचार के मामले स्वतः ही कम हो जाने चाहिये।
ज्ञात
आय से अधिक अर्जित संपति को तत्काल प्रभाव से जब्त करने का प्रावधान भी भ्रष्ट राजनीतिज्ञ, प्रशासनिक / सैनिक / न्यायिक अधिकारी, न्यायाधीश, व्यवसायी, पत्रकार
व मीडिया घरानों के मालिक आदि के लिए भ्रष्ट आचरण में लिप्त होने में एक कारगर बाधक साबित हो सकता
है। इसके लिए हमें अनुसंधान संस्थाओं (जैसे पुलिस, CBI, सतर्कता विभाग, CVC) और न्यायपालिका के कार्यप्रणाली में बड़े पैमाने पर सुधार लाने होंगे। हमारे
देश में न्यायिक प्रक्रिया मंहगी, लंबी और सुस्त है। भ्रष्टाचार
के मामलों में निचली अदालतों से ही फैसला आने में वर्षों लग जाते हैं। CBI द्वारा दायर भ्रष्टाचार के मामले 15-20 वर्षों तक लंबित रहते हैं। निचली अदालत
से उच्चतम न्यायालय तक के फैसले में 20-25 वर्षों का समय निकाल जाता है। ऐसे हालात
में कौन भला भ्रष्टाचार में लिप्त होने से घबराएगा? हमारे देश
में भ्रष्टाचार के उन्हीं मामलों में कमी आ रही है जहां समय-बद्ध सीमा के अंदर विभागीय
कार्यवाही पुरी की जाती है और जहां अनुशासनिक अधिकारी को दंड देने का अधिकार है।
भारत में सबसे
अधिक भ्रष्टाचार नागरिक सेवाएँ प्रदान करने वाली संस्थानों या कार्यालयों में है
जिससे आम नागरिक रोजाना स्तर पर प्रभावित होते हैं। सरकारी दिशा-निर्देशों और
नियंत्रण की कमी, लेन-देन में पारदर्शिता की कमी के कारण रियल इस्टेट में भ्रष्टाचार बड़े पैमाने
पर व्याप्त है जो काले धन को बढ़ावा दे रहा है। सरकारी सेवाओं के लिए हमें लंबे-चौड़े
दस्तावेज़ जमा करने पड़ते हैं और कई सारे कार्यों के लिए Notary से सत्यापन करवाने होते हैं। यह जग-जाहीर है कि Notary अधिकारी अपनी फीस लेकर किसी भी दस्तावेज़ को बिना उसके मूल प्रति से मिलाए
सत्यापित कर देते हैं। क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है? प्रधानमंत्री
ने घोषणा की थी कि अब Notarized की जगह स्वयं-सत्यापित दस्तावेज़
जमा करने होंगे। इस कदम से एक तो कार्य-प्रणाली में सरलता आएगी और साथ ही नागरिकों
की स्वयं की जवाबदेही भी बढ़ेगी। हालांकि जमीनी स्तर पर प्रधानमंत्री के ऐलान का कोई
असर होता नही दिख रहा है।
जटिल
नियम-कानून / प्रणाली, विवेकाधिकार
वगैरह का समीक्षा एवं सरलीकरण, समय सीमाबद्ध कार्य पर बल
देना, सत्ता एवं अधिकार का निचले स्तर तक विकेन्द्रीकरण, दलालों की कम से कम दखल-अंदाजी, सतर्कता विभाग द्वारा
नित्या औचक निरीक्षण वगैरह के द्वारा हम
भ्रष्टाचार को कम करने में सफल हो सकते हैं। पासपोर्ट सेवा और रेल आरक्षण सेवा ऐसे
उदाहरण हैं जहां सेवा की विकेन्द्रीकरण और सरलीकरन से नागरिकों को फायदा हुआ है। जब
से पासपोर्ट केन्द्रों पर ऑन-लाइन एप्पोइंटमेंट और तत्काल सेवा शुरू हुआ है, पासपोर्ट कार्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार में बहुत हद तक कमी आई है।
इसी प्रकार भारतीय रेल की आरक्षण प्रणाली जब से ऑन-लाइन हुई है, भ्रष्टाचार में कमी आई है। तत्काल सेवा एक ऐसी उदाहरण है जहां सरकार
नागरिकों से सेवा शुल्क लेकर एक समय सीमा में जरूरतमंद नागरिकों को पासपोर्ट और
रेल टिकट मुहैया कराती है। इन कार्यालयों से
बिचौलिये / दलालों का प्रभाव काफी हद तक कम हुआ है।
सरकारी
कार्यालयों में जहां नागरिक सेवाएँ प्रदान की जाती हैं वहाँ भ्रष्टाचार बड़े पैमाने
पर व्याप्त है। क्या हम नागरिक सेवा प्रदान करने की अत्यधिक समय सीमा तय नहीं कर सकते
हैं? भ्रष्टाचार को कम करने की दिशा में दो अलग सेवा
प्रणाली लागू करने पर भी विचार किया जा सकता है। पहले प्रणाली में जो नागरिक त्वरित
कार्यवाई चाहते हैं, उनसे सरकार सेवा शुल्क लेकर तय सीमा के
अंदर नागरिकों को सेवा मुहैया करा सकती है। दूसरा प्रणाली सेवा शुल्क रहित होगा जिसमें
भी अधिकतम समय सीमा तय होगी और संबंध अधिकारी अधिकतम तय समय के भीतर सेवा प्रदान
करने के लिए बाध्य होंगे। वैसे नागरिकों को अधिकतम समय सीमा से पहले ही नागरिक सेवाएँ
मिल सके उसके लिए सरकार अधिकारियों की कार्य-कुशलता को बढ़ावा देने के लिए अन्य
नागरिकों से प्राप्त सेवा शुल्क का एक हिस्सा प्रोतशाहन के रूप में दे सकती है। इससे
कार्य-कुशलता में भी बढ़ोत्तरी और भ्रष्टाचार में भी कमी आने की उम्मीद की जा सकती है।
जैसे-जैसे
नागरिक सेवाओं में सुधार आएगा, नागरिक को उनके मौलिक अधिकार
समय सीमा में मिलेंगे, उनका जीवन स्तर में सुधार होगा, हम कालेधन और भ्रष्टाचार पर काबू पाने में सफल हो पाएंगे। यही तो
सुशासन के संकेत हैं।
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