सोमवार, 16 नवंबर 2015

यात्रा - भाग 3

यात्रा 
    

   
यात्रा की पिछली दो कड़ियों में मैंने पर्यटन के क्षेत्र में स्वदेशी एवं विदेशी पर्यटकों के बारे में संक्षिप्त में लिखा था। इस कड़ी में हाल ही में पुरी की गयी एक यात्रा के एक अंश के बारे में लिख रहा हूँ। यह यात्रा व्यक्तिगत दृष्टिकोण से अत्यंत ही महत्वपूर्ण रहा क्योंकि इस यात्रा से मुझे अपने को पहचानने और समझने का बहुत ही सुनहरा मौका मिला। 
अभी हाल ही में मैं दिल्ली से यात्रा शुरू करके कश्मीर घाटी, लद्दाख और मनाली होते हुए दिल्ली वापस आया हूँ। इस यात्रा की खाशीयत यह थी कि पूरे सफर के दौरान मैं और मेरी गाड़ी एक दूसरे के हमसफर थे यानि मैं अकेला ही सफर पर निकाल गया था। 3150 किलोमीटर की सफर 11 दिनों में पूर्ण करके दिल्ली वापस आया था। हालांकि पूरे सफर के दौरान दो ऐसे वक्त भी आए जब मैं दुर्घटना का शिकार भी हुआ। 
महानगर दिल्ली हो या कोई छोटा कस्बा, मैंने यही पाया कि मोटरसाइकल सवार सड़क के बीचो-बीच चलना पसंद करते हैं। भले ही उनके इस गलत आदत से अनेक सड़क हादसों में मोटरसाइकल चालकों की मौत भी होती रही हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश इन दुर्घटनाओं से कोई शिक्षा लेने को तैयार नहीं है। सफर के पहले दिन ही मैं दुर्घटना का शिकार हो गया जब 90 km/h की गति से चल रही मेरी गाड़ी एक मोटरसाइकल सवार को बचाने के चक्कर में बगल से गुजर रहे ट्रक से जा टकराई। दूसरी दुर्घटना दूसरे दिन कश्मीर घाटी में पहाड़ों पर एक तीव्र मोड पर सामने से आती हुई बस ने अपने पिछले हिस्से से मेरी गाड़ी को ठोक दिया। सुरक्षा की दृष्टि से यह टक्कर बहुत ही खतरनाक था क्योंकि सड़क के दूसरे तरफ बहुत गहरी खाई थी। अगर समय पर मैंने ब्रेक नहीं लगाई होती तो संभवतः सैकड़ों फीट गहरी खाई में गाड़ी गीर जाती। दोनों ही हादसे में मैंने मौत को बहुत ही करीब से देखा था। टक्कर तेज होने के बावजूद दोनों मौकों पर किसी प्रकार की क्षति मुझे नहीं हुई। किसी और की गलती का खामियाजा मुझे भुगतना पड़ा और दिल्ली वापस आने के बाद तकरीबन 35,000 रुपए गाड़ी की मरम्मत में खर्च करने पड़े।  13 दिनों में यात्रा पूर्ण करके दिल्ली वापस पहुँचने के मकसद से मैंने अपनी यात्रा प्रारंभ की थी। कार्यक्रम के अनुसार मेरी पहली पड़ाव विश्व-प्रसिद्ध रमणीय स्थल Patnitop थी। यहाँ मैंने रात्री विश्राम के लिए जम्मू-कश्मीर पर्यटन विकास निगम की गेस्ट-हाउस में आरक्षण करा रखा था। दिल्ली से 690 किलोमीटर की दूरी मैंने 13 घंटों की लगातार ड्राइविंग के बाद पूरी की और साँय 7.30 बजे Patnitop गेस्ट-हाउस पहुँच गया था। मुख्य सड़क से तकरीबन 150 मीटर की ऊँचाई पर बनाया गया गेस्ट-हाउस बहुत ही सुंदर दृष्य प्रस्तुत कर रहा था। मैं अपने अनुमान से तकरीबन डेढ़ घंटे बाद Patnitop पहुँचा था। घर से निकलते वक़्त मेरी यही कोशिश थी कि मैं अंधेरा होने से पहले यानि 6 बजे तक गेस्ट-हाउस में प्रवेश कर जाऊँ। इसका एकमात्र कारण यह था कि मैं जिस रास्ते पर निकल पड़ा था उस रास्ते पर मैं पहले कभी नहीं गया था और सुन रखा था कि जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-1) पर वाहन चलाना कठिन है। आखिर के 85 किलोमीटर तय करने में मुझे तकरीबन 4 घंटे लग गए जिसकी मैंने कभी कल्पना नहीं की थी। 
उधमपुर के लिए दो रास्ता जाता है, एक जम्मू शहर होते हुए और दूसरा रास्ता जम्मू शहर से पहले ही कट जाता है जो मानसर लेक से गुजरता है। मानसर लेक जम्मू शहर के पर्यटन मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के तौर पर चिन्हित है। मानसर लेक के रास्ते दिल्ली से उधमपुर की दूरी तकरीबन 30 किलोमीटर कम हो जाती है। 
इस बात से अनभिज्ञ कि इस मार्ग की हालत कैसी होगी, मैंने 30 किलोमीटर की दूरी बचाने के लोभ में गाड़ी मानसर लेक वाले रास्ते में मोड़ दी। मानसर लेक अपने आप में अत्यंत ही सुंदर है, परंतु उसके चारों दिशा में स्थित पहाड़ और हरियाली उसे और भी आकर्षित बना रही थी। मुख्य मार्ग से मुड़ने और अगले मुख्य सड़क में मिलने के बीच 30 किलोमीटर की दूरी थी जो अधिकतर पहाड़ों के उतार-चढ़ाव भरे रास्ते से होकर जुगरा । पत्थर, मिट्टी और गहरे गड्ढों से भरे इस 30 किलोमीटर को तय करने में मुझे 2 घंटे 30 मिनट लग गए। अपने निर्णय पर बहुत अफसोस हो रहा था एवं स्वयं पर गुस्सा भी। लेकिन चलते रहने के अलावा और कोई दूसरा उपाय भी नहीं था। 13 घंटों की ड्राइविंग के बाद जब मैं Patnitop पहुंचा तब तक गर्दन, कंधे और कमर की हालत खराब हो चुकी थी। अगस्त महीने के आखरी सप्ताह में ही Patnitop में रात्री में तापमान 7-8 डिग्री था और रात को सोते समय मुझे एक मोटा कंबल उपयोग में लाना पड़ा था। मैंने गरम पानी की थैली से अपने कंधे और कमर की सिकाई करना उचित समझा। 
अगले दिन सुबह अपने अगले पड़ाव यानी जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के लिए निकलना था और मेरी जानकारी कहती थी कि अगला सफर आज के सफर से भी ज़्यादा मुश्किल रास्ते से होकर गुजरता था। थकावट की वजह से रात को बहुत ही अच्छी नींद आई। प्रातः 6 बजे का अलार्म लगाकर सोया था। सुबह जब अलार्म से नींद खुली तो कंबल की गर्माहट और बीते दिन की थकावट की वजह से बिलकुल ही बीछावन से बाहर निकलने का मन नही हो रहा था। सुबह निकालने में जितनी देर करता, घाटी में भारी वाहनों की संख्या बढ़ती जाती और अपने मंजिल पर भी देर से पहुंचता। यही सोचकर मैंने आरामदायक बीछावन को त्यागकर बाहर निकलने में ही समझदारी समझी। प्रातः 7.15 बजे मैं अपनी गाड़ी के अंदर था और अपने अगले सफर पर निकाल पड़ा। 
Patnitop से श्रीनगर के बीच 182 किलोमीटर की दूरी मैंने 7 घंटे में पूरी की। Patnitop से निकलने के बाद 90 किलोमीटर तक पहाड़ों और घाटियों से गुजरता हुआ काजीगुंद पहुंचा। इस दौरान कई ऐसे दौर आए जहां सड़क थी ही नहीं। जगह-जगह पहाड़ों से पानी गिरने के कारण सड़क टूटे हुए थे और भारी वाहनों की आवाजाही की वजह से सड़क पर चिकनाई वाली कीचड़ बन गयी थी जिससे गाड़ी चलाना अत्यंत ही मुश्किल हो रहा था। सुबह जल्दी निकाल जाने का मेरा फैसला सही प्रतीत हुआ। सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण Jawahar Tunnel (2.5 किलोमीटर लंबा) जो कश्मीर घाटी को देश के अन्य हिस्से से जोड़ता है उसे भी देखने का मौका मिला। Tunnel के प्रवेश और निकास द्वार पर सेना की तैनाती थी और फोटो खींचने की आज्ञा नहीं थी। Tunnel में धीमी रौशनी के बीच वाहन से निकल रही धुआँ तैर रहे थे। Tunnel से गुजरते हुए रोमांच एवं भय दोनों भावना एक साथ उत्पन्न हो रहे थे। रोमांच इस कारण कि इससे पहले इतने लंबे Tunnel में सड़क मार्ग से गुजरने का पहला अवसर था और भय इस कारण कि यदि कहीं कोई वाहन खराब हो जाए या चक्का से हवा निकाल जाए तो Tunnel में धुआँ भरा होने के कारण साँस लेने में परेशानी हो सकती है। 
Jawahar Tunnel से निकलने के कुछ मिनट बाद ही
कश्मीर घाटी की पहली झलक देखने को मिला। सन 2004
में तंक-वादियों ने सीमा सड़क संगठन (BRO) के एक 
अभियंता को अगवा करके उसकी हत्या कर दी थी। इस
स्थान को उन्हीं की याद में बनाया गया है। Titanic View 
Point के नाम से प्रसिद्ध यह स्थान थोड़ी देर विश्राम करने 
के दृष्टिकोण से अत्यंत ही सही है। मैगी, ओम्लेट और 
चाय बेचते तीन छोटे-छोटे दुकान हैं। पर्वतों के बीच हरे-भरे 
खेतों को दूर उचाई से देखना बहुत ही सुंदर नजारा प्रस्तुत 
कर रहा था।  















  इस रमणीक स्थल से निकलने के उपरांत मैं करीब दिन के 12 बजे काजीगुंद पहुँचा। सड़क अच्छे हालत में होने की वजह से काजीगुंद से श्रीनगर तक का सफर आरामदायक रहा और दिन के 2.15 बजे अपने गंतव्य श्रीनगर के विश्व-प्रसिद्ध Dal Lake पहुँच गया था। रास्ते में केशर की खेती के लिए प्रसिद्ध Pampore नामक जगह से गुजरा जहां सड़क किनारे केसर की कई सारे दुकानें कतार से बनी हुई थीं।









 
तीन दिवसीय श्रीनगर प्रवास, गुलमर्ग, पहलगाम एवं श्रीनगर से लद्दाख होते हुए मनाली तक के सफर के अपने अनुभव को जल्द ही अगले भाग में प्रस्तुत करूँगा।



                                                                                       क्रमशः