मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

कश्मीर यात्रा-पहलगाम

पहलगाम यात्रा 


गुलमर्ग की सफल और सुखद यात्रा के बाद मैं अपने अगले पड़ाव "पहलगाम" की तरफ निकल पड़ा। पहलगाम यानि चरवाहों का घाटी। समुद्र तल से तक़रीबन ७५००ft  की ऊंचाई पर स्थित पहलगाम कश्मीर के खूबसूरत वादियों में एक और खूबसूरत स्थल जो स्वदेशी एवं विदेशी शैलानियों में समान रूप से प्रसिद्ध है। शेषनाग एवं लिद्दर नदी के संगम पर स्थित यह पर्यटन शहर अपने प्राकृतिक खूबसूरती के लिए विख्यात है। दिल्ली में यमुना नदी का प्रदूषित काले रंग का पानी देखने के बाद लिद्दर नदी की हरे रंग का स्वच्छ बहता पानी बेहद ही खूबसूरत लगता है और आपको रोमांचित कर सकता है।
पहलगाम का एक दृश्य 


 पहलगाम  का एक दृश्य 

पहलगाम का एक दृश्य 

लिद्दर नदी का एक दृश्य

लिद्दर नदी का एक दृश्य 

पिकनिक मनाने के लिहाज से पहाड़ों से घिरे और बहते लिद्दर नदी का किनारा से बेहतर कोई और स्थान हो ही नही सकता। पहलगाम में बेहद ही खूबसूरत १८ होल गोल्फ कोर्स, कुछ फुलवारी और लिद्दर नदी में मछली पकड़ने का लुत्फ़ उठाने के सिवा कुछ खास नही मिला। जिन्हें घुड़सवारी करने का शौक है, उनके लिए पोनी सवारी की सुविधा है। एक वक्त था जब पहलगाम हिंदी सिनेमा फिल्माने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल था। परंतु कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियाँ बढ़ने की वजह से बॉलीवुड ने वहां शूटिंग बंद कर दिया। हालाँकि अब धीरे-धीरे फिर से कुछ हिंदी सिनेमा की शूटिंग शुरू हुई है। सर्दी के मौसम में तो पहलगाम की पहाडियाँ बर्फ से ढँक जाती है और तापमान -१५ C तक लुढ़क जाता है।   

पहलगाम से तक़रीबन १२km और ऊपर "अरु" नामक स्थान है जहाँ से कोल्हाई ग्लेशियर, कतरनाग, तरसर एवं मर्सर लेक के लिए ट्रैकिंग शुरू होता है। बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग का असर कोल्हाई ग्लेशियर पर भी पड़ा है और अब यह पिघल कर आधे से भी कम रह गया है। 


तरसर लेक 


 मर्सर लेक 

पहलगाम से तक़रीबन १५km और ऊपर चढ़ने पर, समुद्र तल से तक़रीबन ९५०० ft की ऊंचाई पर स्थित "चंदनवारी" नामक स्थान है। बाबा अमरनाथ के दर्शन के लिए जा रहे श्रद्धालुओं की यात्रा यहीं से शुरू होती है। पहलगाम से चंदनवारी तक का सफर गाड़ी से तय किया जाता है, परंतु चंदनवारी से आगे सड़क की सुविधा नहीं होने और अत्यधिक चढ़ाई के कारण श्रद्धालुओं को पैदल या पोनी की सवारी लेनी पड़ती है। अमरनाथ गुफा इस स्थान से तक़रीबन ३२ km की दुरी पर है। शेषनाग लेक अमरनाथ गुफा के रास्ते में चंदनवारी से तक़रीबन १२ km दूर समुद्री तल से ११७००ft  की ऊंचाई पर स्थित है। 

जब मैं चंदनवारी पहुंचा था उसी समय अमरनाथ यात्रा की समाप्ति हुई थी इसलिए वहां सेना, सरकार, गैर-सरकारी संस्थानों एवं निजी व्यक्तियों द्वारा लगाये गए कैम्प्स एवं प्रदान की जानेवाली सुविधाओं को हटाए जाने की प्रक्रिया को देख पाया था। यहीं पर ७-८ ft मोटी ग्लेशियर देखने का अवसर प्राप्त हुआ जो धुप की वजह से धीरे-धीरे पिघल रहा था।


अमरनाथ यात्री पंजीकरण एवं प्रवेश द्वार 


अमरनाथ यात्रियों के रुकने के लिए अस्थायी / स्थायी टेंट और हट 

चंदनबाड़ी में भारतीय सेना का कैंप का एक दृश्य 

अमरनाथ गुफा की दुरी दर्शाता बोर्ड 

अमरनाथ गुफा की तरफ जाता सीढ़ी 

पिघलते हुए ग्लेशियर का एक दृश्य 
पिघलते हुए ग्लेशियर का एक दृश्य 


चंदनवारी और पहलगाम के अलावा एक और रमणीक स्थल है जो "बेताब वैली" के नाम से मशहूर है। पीर पंजल एवं जंस्कार हिमालय पर्वत श्रृंखला के बीच स्थित यह घाटी हरे-भरे घास, बर्फ से ढंके पहाड़ों और ऊँचे-ऊँचे देवड़दार के पेड़-पौधों के लिए विख्यात है। इस स्थान का नाम सनी देओल-अमृता सिंह की पहली हिट फिल्म "बेताब" के नाम पर रखा गया जिसकी अधिकांश शूटिंग इसी वादी में हुई थी। इस स्थान पर एक बहुत बड़ी पार्क है जिसके मध्य में लिद्दर नदी बहती है। पार्क में अनेक पेड़-पौधे देखे जा सकते हैं और स्थानीय लोगों के लिए पिकनिक एवं मनोरंजन का एक महत्वपूर्ण स्थान जान पड़ता है।         
              
बेताब वैली का एक दृश्य 

बेताब वैली 
बेताब वैली के मध्य से बहता लिद्दर नदी 

बेताब वैली पार्क से वैली का दृश्य 
पार्क के अंदर का एक दृश्य 



पार्क से वैली का दृश्य 

पार्क से वैली का दृश्य 

पार्क के अंदर का दृश्य 

पार्क के अंदर का दृश्य

पार्क के अंदर का दृश्य

पार्क के अंदर का दृश्य
पार्क के अंदर का दृश्य



पार्क के अंदर का दृश्य

पार्क के मध्य से बहता लिद्दर नदी 

पार्क के मध्य लिद्दर नदी के किनारे 

पार्क के मध्य लिद्दर नदी के किनारे 

पार्क के मध्य लिद्दर नदी के किनारे 

मुख्य सड़क के साथ-साथ बहता लिद्दर नदी (पानी हरे रंग का है)

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

कश्मीर भ्रमण - गुलमर्ग

गुलमर्ग भ्रमण 

अपने श्रीनगर प्रवास के अगले दिन मैंने अपनी गाड़ी निकाली और निकल पड़ा गुलमर्ग के पहाड़ियों का आनंद उठाने। Dal Lake से तक़रीबन ५५ km दूर गुलमर्ग की पहाड़ियों पर ९० मिनट में आराम से पहुंचा जा सकता है हालाँकि समय इस पर भी निर्भर करेगा कि आप श्रीनगर किस वक्त छोड़ रहे हैं। प्रातः ८ बजे के बाद श्रीनगर शहर के अंदर अत्यधिक ट्रैफिक की वजह से कई चौराहों पर जाम लगने का अंदेशा रहता है जिससे ९० मिनट की जगह १५०-१८० मिनट तक लग सकता है। आखिर के तक़रीबन ७-८ km पहाड़ों पर घुमावदार चढ़ाई चढ़नी होती है। 


गुलमर्ग पहाड़ी रिसोर्ट और शरद ऋतू में पहाड़ों के ढलान बर्फ से ढके होने के कारण स्कीईंग, स्लेजिंग और स्नोबोर्डिंग जैसे बर्फ के खेल के लिए प्रसिद्ध है। गुलमर्ग भारत में सबसे ऊंचाई पर स्थित १८ होल गोल्फ क्लब के लिए भी प्रसिद्ध है। 



गुलमर्ग को वहां के गरेडियों द्वारा रखा गया पुराने नाम "गौरीमर्ग" से जाना जाता था। ऐसा मानना है कि गुलमर्ग की खोज १६वीं सदी में सुल्तान युसूफ शाह ने की थी और गुलमर्ग मुग़ल बादशाह जहांगीर का चहेता रिसोर्ट था। अंग्रेजों ने गुलमर्ग को स्की रिसोर्ट की तरह स्थापना की और उसके बाद से गुलमर्ग विश्व में स्नो स्कीईंग के लिए अपनी स्थान बना चूका है। मध्य दिसंबर से मध्य मार्च तक गुलमर्ग की खूबसूरत पहाड़ियां बर्फ की मोटी चादर से ढंकी होती है और देशी-विदेशी शैलानी स्कीइंग का भरपूर आनद उठाते हैं। प्रशिक्षित स्की गाइड की देख-रेख में स्कीइंग सिखने के लिहाज से गुलमर्ग के पहडियों की ढलान नवसिखुओं और मध्यम श्रेणी के स्किकर्ता के लिए अति उपयुक्त समझा जाता है।  


गुलमर्ग के अनेक आकर्षणों में से सबसे अधिक आकर्षण वहां पर स्थित दो चरणों में गोंडोला केबल कार की सवारी है जो शैलानियों को समुद्री तल से १४००० फ़ीट की ऊंचाई पर अफरवात पर्वत श्रेणी लेकर जाता है। 



दूसरे चरण के ऊंचाई पर पहुँचने के पश्चात मेरे साथ आए गाइड ने मुझे और ऊपर चलने की सलाह दी जो बड़े-बड़े पत्थरों के बीच से होता हुआ गुजरता था। हम तकरीबन और १५०० फ़ीट ऊंचाई पर पैदल पत्थरों के बीच से होते हुए चढ़ने में सफल हुए। पत्थरों के बीच से चढ़ाई चढ़ने का एक अलग ही अनुभव था जिसे शब्दों में बयां करना नामुमकिन है। 




इस स्थान से तक़रीबन २km की दुरी पर पाकिस्तान अधिग्रहित कश्मीर के सीमा पर पाकिस्तान रेंजर्स की टुकड़ी तैनात थी जो उस ऊंचाई से साफ़-नजर आ रहे थे। हमें बताया गया कि तक़रीबन १ km और ऊपर चढ़ने के बाद अफरवात पर्वत के मध्य स्थित एक खूबसूरत लेक देखा जा सकता है। परंतु उस समय पाकिस्तान रेंजर्स और भारतीय सेना के बीच चल रही गोलीबारी की वजह से हम आगे जाने का खतरा नहीं उठा सकते थे और हमें वापस लौटना पड़ा।  
गोंडोला के दूसरे चरण पर वापस पहुँच कर वहां से तक़रीबन दूसरी दिशा में १ km की पैदल चढ़ाई चढ़ने के बाद एक बर्फ के पिघलने से बहती झरने का लुत्फ़ उठाया जा सकता है। और वहीँ से कुछ और ऊंचाई पर जाने के बाद अपने तरह का एकमात्र वृक्ष "पेपर ट्री" देखने को मिलता है। इस वृक्ष का छाल सफ़ेद रंग का है और इतना चिकना है कि हम उसके उपर कलम से कागज की तरह लिखाई कर सकते हैं और इसी कारण इस वृक्ष को "पेपर ट्री" कहते हैं। 



महारानी मंदिर उर्फ़ मोहिनेश्वर शिवालय के नाम से प्रख्यात शिव-पार्वती की मंदिर भी हिन्दुओं के लिए गुलमर्ग का एक आकर्षण केंद्र है। इस मंदिर का निर्माण महाराजा हरी सिंह की सहचरी मोहिनी बाई सिसोदिया ने करवाया था। यह मंदिर राज्य के डोगरा राजा का राजकीय मंदिर के रूप में भी उपयोग आता है।  


सोमवार, 14 दिसंबर 2015

यात्रा - श्रीनगर भ्रमण

श्रीनगर
शंकराचार्य मंदिर, शालीमार बाग, चश्माशाही बाग, वनस्पति उद्यान, 
परी महल

कश्मीर घाटी की यह मेरी पहली सफर थी।  इसके पहले दो बार वैष्णो देवी माता के दरबार से लौट आया था। Patnitop से तकरीबन 7 घंटे का सफर तय करने के बाद मैं श्रीनगर शहर में था। श्रीनगर में प्रवास का इंतज़ाम विश्व प्रसिद्ध "DAL LAKE" में "CUTTY SHARK" नामक हाउस बोट में किया हुआ था। क्लब महिंद्रा हॉलीडेज ने Cutty Shark  को कुछ महीने पहले ही अपने मेंबर्स के लिए रिसोर्ट के रूप में किराये पर लिया है।  
"डल लेक-Dal Lake"
श्रीनगर का सबसे महत्वपूर्ण आकर्षण Dal Lake तक़रीबन 18 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और चार अन्य Lake गगरीबल, लोकुट लेक, बोड लेक और नागिन लेक से घिरा हुआ है। Dal Lake कमल का फूल, पानी में उगने वाला लिली फूल, सिंघाड़े, किंगफ़िशर एवं बगुले के लिए भी प्रसिद्ध है। डल लेक सबसे ज्यादा हाउस बोट के लिए जाना जाता है। इसके अलावा जल क्रीड़ा जैसे कयाकिंग, कैनोइंग, वाटर सर्फिंग इत्यादि भी अब आकर्षण का केंद्र बन गए हैं।  
पीर-पंजल पर्वत-श्रृंखला और शंकराचार्य पर्वत की Dal Lake की शांत पानी पर प्रतिबिंब, घाट पर खड़ी अनेक शिकारा, Lake के किनारे Boulevard पर दौड़ती गाड़ियाँ, पगडण्डी पर चलते शैलानियों का हुजूम एक बेहद ही खूबसूरत नजारा प्रस्तुत करते हैं।  Lake के किनारे घूमते हुए अनेक फव्वारों और बाजारों का एक साथ लुत्फ़ उठाते हुए शाम को अच्छी तरह से गुजारा जा सकता है। Lake के मध्य स्थित Nehru Park में भी घूमने का एक अलग अनुभव है। शिकारा में बैठकर Dal Lake का भ्रमण कर सकते हैं - Lake के मध्य में अनेकों पानी पर तैरते हुए दूकान मिल जायेंगे जो नूडल्स, पकोड़े, समोसे, बिस्कुट, आमलेट, चाय और कॉफ़ी बेचते हैं और आप शिकारा में बैठे हुए उनका आनंद उठा सकते हैं।  इसके अलावा श्रृंखला से बनी हुई अनेक हाउस बोट में "मीणा बाजार" के नाम से प्रचलित खरीदारी का लुत्फ़ उठाया जा सकता है। इस बाजार में खाने-पिने से लेकर कपडे और अन्य प्रकार के साज-सजावट के सामग्री भी मिलते हैं।   

      











"हाउस बोट"
हाउस बोट के आतंरिक खूबसूरती की चर्चायें सुन रखा था। श्रीनगर के हाउस बोट अंग्रेज़ों के समय में पहली बार अस्तित्व में आए। उन्होंने ग्रीष्म ऋतू में अवकाशगृह के लिए बनवाया क्योंकि उन्हें जमीन खरीदने की इजाजत नही थी। आज की तारीख में Dal Lake में तक़रीबन 1200 हाउस बोट हैं जिन्हें कमरे, सजावट और उनमें उपलब्ध सुविधाओं के आधार पर "Deluxe, Category-A, Category-B, Category-C और Category-D" में वर्गीकृत किया गया है। जम्मु-कश्मीर पर्यटन विभाग ने उसी अनुसार इनमें कमरों की दरें तय कर रखी हैं। 
शिकारा से उतरने के बाद मैं हाउस बोट के एक छोटे से बरामदे में खड़ा था जहाँ से Dal Lake की सुंदरता और ठीक सामने प्रसिद्ध शंकराचार्य पर्वत को देखा जा सकता था। जैसे ईंट से बने मकान में पहले हम Living Room में पहुँचते हैं, बिलकुल वैसे ही एक छोटे से बरामदे को पार करते ही मैं हाउस बोट के बेहद ही खूबसूरत Living Room में खड़ा था। फर्श पर कालीन, नक्कासी किये हुए फर्नीचर, लकड़ी से बनी दीवारों और छत पर बेहद खूबसूरत नक्कासी को देखकर बाकी हिस्से की खूबसूरती का अंदाजा लगाया जा सकता था। Living Room के साथ ही Dining Room लगा था और यहाँ भी वैसी ही खूबसूरती थी। Dining Room  के साथ ही एक छोटा सा रसोईघर और उसी के पास से ऊपर की तरफ जाता लकड़ी की बनी हुई सीढ़ी जो आगंतुक को हाउस बोट के ऊपर वाले कमरे में ले जाता था। पता चला उस हाउस बोट में तीन कमरे थे, दो निचले हिस्से में और एक कमरा प्रथम तल पर था। मुझे प्रथम तल स्थित कमरे में रुकने के लिए दिया गया। कमरे और बाथरूम के अंदर भी लकड़ी के ऊपर बेहद ही खूबसूरत नक्कासी किया गया था। अटैच्ड बाथरूम में पाश्चात्य कमोड, नहाने के लिए बाथटब, गीजर वगैरह के सभी इंतज़ाम थे। कह सकते हैं कि सुविधाओं के मामले में यह हाउस बोट किसी भी तीन सितारे होटल के समतुल्य था।  







"शंकराचार्य मंदिर" 
स्थानीय रमणीक स्थलों के भ्रमण की शुरुआत मैंने शंकराचार्य मंदिर से की। शंकराचार्य पर्वत (जिसे तख़्त-ए-सुलैमान के नाम से जाना जाता था) पर 5 km की घुमावदार चढाई चढ़ने के बाद शंकराचार्य मंदिर के निचे पहुंचा जा सकता है और वहां से तक़रीबन 161 सीढियों की मदद से प्रवेश द्वार पर पहुँचते हैं। मंदिर प्रांगण में मुख्य मंदिर भगवान शिव की है। ऐसा मान्यता है कि राजा गपोडत्या ने इस मंदिर का निर्माण 371 ई में किया था और इसका नाम गोपाद्री रखा था। ऐसा भी मान्यता है कि सनातन धर्म की स्थापना हेतु आदी शंकराचार्य की कश्मीर यात्रा के दौरान यहाँ प्रवास हुआ था और उसी के बाद से इस मंदिर का नाम गोपाद्री से बदलकर शंकराचार्य मंदिर कर दिया गया। मंदिर के प्राचीर से समूचे श्रीनगर शहर और Dal Lake के खूबसूरत नज़ारे को कैमरे में कैद किया जा सकता है परन्तु सुरक्षा की दृष्टि से शैलानियों को मोबाइल या कैमरा ऊपर ले जाने की अनुमति नही है। 
"शालीमार बाग़
शालीमार यानि "प्रेम का वास"। शालीमार बाग श्रीनगर के मुख्य आकर्षण में से एक है। शालीमार बाग की स्थापना मुगल बादशाह जहाँगीर ने अपने बेगम नूरजहां को खुश करने के लिए बनवाया था। ऐसा समझा जाता है कि बादशाह जहांगीर गर्मियों में अपने रानी के साथ कश्मीर चले जाते थे और अपने कश्मीर प्रवास के दौरान यहीं रोजाना दरबार लगाया करते थे। बाग को तीन सीढ़ीदार हिस्सों में बनाया गया है - बाहरी हिस्से को दीवाने आम; मध्य हिस्से को दीवाने खास एवं ऊपरी हिस्से को शाही जनाना के नाम से जाना जाता है। इस बाग में तकरीबन तीन सौ से ऊपर फव्वारे लगे हुए हैं और अनेक प्रकार के फूल और पौधे देखे जा सकते हैं। पूरे बागे में चिनार के ऊंचे-ऊंचे पेड़ देखे जा सकते हैं जिनमें से एक पेड़ 400 वर्ष पुराना है। शरद एवं बसंत ऋतु में चिनार के पत्तों का रंग हरा से बदलकर सुनहरे रंग का हो जाता है। इस बाग को चीनी खनास के लिए भी जाना जाता है जिसमें रात को तेल के दीपक से रौशन करते हैं जो झरने पर स्पेशल इफैक्ट उत्पन्न करता है । 













"चश्माशाही"
चश्माशाही बाग का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहाँ द्वारा अपने पुत्र दारा शिकोह को तोहफा में देने के उद्देश्य से किया गया था। ऐसी मान्यता है कि चशमाशाही का नाम बाग में स्थित एक झरने के खोजकर्ता के नाम पर है। कश्मीरी महिला संत रूपा भवानी उर्फ "साहिब" ने इस झरने की खोज की थी और उन्हीं के नाम पर इस बाग को चश्मेसाहिबी के नाम से पुकारा जाने लगा जिसे समय गुजरने के साथ लोगों ने चश्माशाही के नाम से सम्बोधन शुरू कर दिया। ऐसा मान्यता है कि इस झरने से निकल रही पानी में औषधीय शक्ति है। अनेक प्रकार के फूलों, पौधों और हरे-भरे खूबसूरत लौन का यह बाग शैलानियों और स्थानीय लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहता है।            







"परी महल"
चश्माशाही के पूर्वी हिस्से में परी महल है जिसे दारा शिकोह ने अपने सूफी गुरु मुल्ला शाह के लिए एक बाग़ के रूप में बनवाया था। शुरू में यहाँ पर कई सारे झरने थे जो बाद में सुख गए हैं। ऐसा मान्यता है कि दारा शिकोह यहाँ पर ज्योतिषशास्त्र का ज्ञान प्राप्त करते थे और इसी स्थान पर औरंगजेब द्वारा उनकी हत्या कर दी गयी थी। परी महल अब एक ऐतिहासीक धरोहर है जिसमें अनेक प्रकार के फूल एवं पौधे लगे हुए हैं। रात्री के समय इस महल को रौशन किया जाता है और श्रीनगर के अधिकांश हिस्से से दूर से ही देखा जा सकता है।   








"वनस्पति उद्यान"

जबरवां पहाड़ी के ढलान और चश्मशाही बाग़ के एक कोने में बना यह बगीचा, सन 1969 में अस्तित्व में आया।  इस बाग़ में तक़रीबन 300 प्रजाति के फूल एवं पौधे देखे जा सकते हैं। तक़रीबन 80 एकड़ क्षेत्र में फैला यह उद्यान जिसे 4 मुख्य हिस्से में विभाजित किया गया है - मनोरंजन, वनस्पति, शोध एवं पौध पुरःस्थापन। उद्यान के एक हिस्से में स्थित लेक में नाव की सवारी की जा सकती है।