सोमवार, 14 दिसंबर 2015

यात्रा - श्रीनगर भ्रमण

श्रीनगर
शंकराचार्य मंदिर, शालीमार बाग, चश्माशाही बाग, वनस्पति उद्यान, 
परी महल

कश्मीर घाटी की यह मेरी पहली सफर थी।  इसके पहले दो बार वैष्णो देवी माता के दरबार से लौट आया था। Patnitop से तकरीबन 7 घंटे का सफर तय करने के बाद मैं श्रीनगर शहर में था। श्रीनगर में प्रवास का इंतज़ाम विश्व प्रसिद्ध "DAL LAKE" में "CUTTY SHARK" नामक हाउस बोट में किया हुआ था। क्लब महिंद्रा हॉलीडेज ने Cutty Shark  को कुछ महीने पहले ही अपने मेंबर्स के लिए रिसोर्ट के रूप में किराये पर लिया है।  
"डल लेक-Dal Lake"
श्रीनगर का सबसे महत्वपूर्ण आकर्षण Dal Lake तक़रीबन 18 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और चार अन्य Lake गगरीबल, लोकुट लेक, बोड लेक और नागिन लेक से घिरा हुआ है। Dal Lake कमल का फूल, पानी में उगने वाला लिली फूल, सिंघाड़े, किंगफ़िशर एवं बगुले के लिए भी प्रसिद्ध है। डल लेक सबसे ज्यादा हाउस बोट के लिए जाना जाता है। इसके अलावा जल क्रीड़ा जैसे कयाकिंग, कैनोइंग, वाटर सर्फिंग इत्यादि भी अब आकर्षण का केंद्र बन गए हैं।  
पीर-पंजल पर्वत-श्रृंखला और शंकराचार्य पर्वत की Dal Lake की शांत पानी पर प्रतिबिंब, घाट पर खड़ी अनेक शिकारा, Lake के किनारे Boulevard पर दौड़ती गाड़ियाँ, पगडण्डी पर चलते शैलानियों का हुजूम एक बेहद ही खूबसूरत नजारा प्रस्तुत करते हैं।  Lake के किनारे घूमते हुए अनेक फव्वारों और बाजारों का एक साथ लुत्फ़ उठाते हुए शाम को अच्छी तरह से गुजारा जा सकता है। Lake के मध्य स्थित Nehru Park में भी घूमने का एक अलग अनुभव है। शिकारा में बैठकर Dal Lake का भ्रमण कर सकते हैं - Lake के मध्य में अनेकों पानी पर तैरते हुए दूकान मिल जायेंगे जो नूडल्स, पकोड़े, समोसे, बिस्कुट, आमलेट, चाय और कॉफ़ी बेचते हैं और आप शिकारा में बैठे हुए उनका आनंद उठा सकते हैं।  इसके अलावा श्रृंखला से बनी हुई अनेक हाउस बोट में "मीणा बाजार" के नाम से प्रचलित खरीदारी का लुत्फ़ उठाया जा सकता है। इस बाजार में खाने-पिने से लेकर कपडे और अन्य प्रकार के साज-सजावट के सामग्री भी मिलते हैं।   

      











"हाउस बोट"
हाउस बोट के आतंरिक खूबसूरती की चर्चायें सुन रखा था। श्रीनगर के हाउस बोट अंग्रेज़ों के समय में पहली बार अस्तित्व में आए। उन्होंने ग्रीष्म ऋतू में अवकाशगृह के लिए बनवाया क्योंकि उन्हें जमीन खरीदने की इजाजत नही थी। आज की तारीख में Dal Lake में तक़रीबन 1200 हाउस बोट हैं जिन्हें कमरे, सजावट और उनमें उपलब्ध सुविधाओं के आधार पर "Deluxe, Category-A, Category-B, Category-C और Category-D" में वर्गीकृत किया गया है। जम्मु-कश्मीर पर्यटन विभाग ने उसी अनुसार इनमें कमरों की दरें तय कर रखी हैं। 
शिकारा से उतरने के बाद मैं हाउस बोट के एक छोटे से बरामदे में खड़ा था जहाँ से Dal Lake की सुंदरता और ठीक सामने प्रसिद्ध शंकराचार्य पर्वत को देखा जा सकता था। जैसे ईंट से बने मकान में पहले हम Living Room में पहुँचते हैं, बिलकुल वैसे ही एक छोटे से बरामदे को पार करते ही मैं हाउस बोट के बेहद ही खूबसूरत Living Room में खड़ा था। फर्श पर कालीन, नक्कासी किये हुए फर्नीचर, लकड़ी से बनी दीवारों और छत पर बेहद खूबसूरत नक्कासी को देखकर बाकी हिस्से की खूबसूरती का अंदाजा लगाया जा सकता था। Living Room के साथ ही Dining Room लगा था और यहाँ भी वैसी ही खूबसूरती थी। Dining Room  के साथ ही एक छोटा सा रसोईघर और उसी के पास से ऊपर की तरफ जाता लकड़ी की बनी हुई सीढ़ी जो आगंतुक को हाउस बोट के ऊपर वाले कमरे में ले जाता था। पता चला उस हाउस बोट में तीन कमरे थे, दो निचले हिस्से में और एक कमरा प्रथम तल पर था। मुझे प्रथम तल स्थित कमरे में रुकने के लिए दिया गया। कमरे और बाथरूम के अंदर भी लकड़ी के ऊपर बेहद ही खूबसूरत नक्कासी किया गया था। अटैच्ड बाथरूम में पाश्चात्य कमोड, नहाने के लिए बाथटब, गीजर वगैरह के सभी इंतज़ाम थे। कह सकते हैं कि सुविधाओं के मामले में यह हाउस बोट किसी भी तीन सितारे होटल के समतुल्य था।  







"शंकराचार्य मंदिर" 
स्थानीय रमणीक स्थलों के भ्रमण की शुरुआत मैंने शंकराचार्य मंदिर से की। शंकराचार्य पर्वत (जिसे तख़्त-ए-सुलैमान के नाम से जाना जाता था) पर 5 km की घुमावदार चढाई चढ़ने के बाद शंकराचार्य मंदिर के निचे पहुंचा जा सकता है और वहां से तक़रीबन 161 सीढियों की मदद से प्रवेश द्वार पर पहुँचते हैं। मंदिर प्रांगण में मुख्य मंदिर भगवान शिव की है। ऐसा मान्यता है कि राजा गपोडत्या ने इस मंदिर का निर्माण 371 ई में किया था और इसका नाम गोपाद्री रखा था। ऐसा भी मान्यता है कि सनातन धर्म की स्थापना हेतु आदी शंकराचार्य की कश्मीर यात्रा के दौरान यहाँ प्रवास हुआ था और उसी के बाद से इस मंदिर का नाम गोपाद्री से बदलकर शंकराचार्य मंदिर कर दिया गया। मंदिर के प्राचीर से समूचे श्रीनगर शहर और Dal Lake के खूबसूरत नज़ारे को कैमरे में कैद किया जा सकता है परन्तु सुरक्षा की दृष्टि से शैलानियों को मोबाइल या कैमरा ऊपर ले जाने की अनुमति नही है। 
"शालीमार बाग़
शालीमार यानि "प्रेम का वास"। शालीमार बाग श्रीनगर के मुख्य आकर्षण में से एक है। शालीमार बाग की स्थापना मुगल बादशाह जहाँगीर ने अपने बेगम नूरजहां को खुश करने के लिए बनवाया था। ऐसा समझा जाता है कि बादशाह जहांगीर गर्मियों में अपने रानी के साथ कश्मीर चले जाते थे और अपने कश्मीर प्रवास के दौरान यहीं रोजाना दरबार लगाया करते थे। बाग को तीन सीढ़ीदार हिस्सों में बनाया गया है - बाहरी हिस्से को दीवाने आम; मध्य हिस्से को दीवाने खास एवं ऊपरी हिस्से को शाही जनाना के नाम से जाना जाता है। इस बाग में तकरीबन तीन सौ से ऊपर फव्वारे लगे हुए हैं और अनेक प्रकार के फूल और पौधे देखे जा सकते हैं। पूरे बागे में चिनार के ऊंचे-ऊंचे पेड़ देखे जा सकते हैं जिनमें से एक पेड़ 400 वर्ष पुराना है। शरद एवं बसंत ऋतु में चिनार के पत्तों का रंग हरा से बदलकर सुनहरे रंग का हो जाता है। इस बाग को चीनी खनास के लिए भी जाना जाता है जिसमें रात को तेल के दीपक से रौशन करते हैं जो झरने पर स्पेशल इफैक्ट उत्पन्न करता है । 













"चश्माशाही"
चश्माशाही बाग का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहाँ द्वारा अपने पुत्र दारा शिकोह को तोहफा में देने के उद्देश्य से किया गया था। ऐसी मान्यता है कि चशमाशाही का नाम बाग में स्थित एक झरने के खोजकर्ता के नाम पर है। कश्मीरी महिला संत रूपा भवानी उर्फ "साहिब" ने इस झरने की खोज की थी और उन्हीं के नाम पर इस बाग को चश्मेसाहिबी के नाम से पुकारा जाने लगा जिसे समय गुजरने के साथ लोगों ने चश्माशाही के नाम से सम्बोधन शुरू कर दिया। ऐसा मान्यता है कि इस झरने से निकल रही पानी में औषधीय शक्ति है। अनेक प्रकार के फूलों, पौधों और हरे-भरे खूबसूरत लौन का यह बाग शैलानियों और स्थानीय लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहता है।            







"परी महल"
चश्माशाही के पूर्वी हिस्से में परी महल है जिसे दारा शिकोह ने अपने सूफी गुरु मुल्ला शाह के लिए एक बाग़ के रूप में बनवाया था। शुरू में यहाँ पर कई सारे झरने थे जो बाद में सुख गए हैं। ऐसा मान्यता है कि दारा शिकोह यहाँ पर ज्योतिषशास्त्र का ज्ञान प्राप्त करते थे और इसी स्थान पर औरंगजेब द्वारा उनकी हत्या कर दी गयी थी। परी महल अब एक ऐतिहासीक धरोहर है जिसमें अनेक प्रकार के फूल एवं पौधे लगे हुए हैं। रात्री के समय इस महल को रौशन किया जाता है और श्रीनगर के अधिकांश हिस्से से दूर से ही देखा जा सकता है।   








"वनस्पति उद्यान"

जबरवां पहाड़ी के ढलान और चश्मशाही बाग़ के एक कोने में बना यह बगीचा, सन 1969 में अस्तित्व में आया।  इस बाग़ में तक़रीबन 300 प्रजाति के फूल एवं पौधे देखे जा सकते हैं। तक़रीबन 80 एकड़ क्षेत्र में फैला यह उद्यान जिसे 4 मुख्य हिस्से में विभाजित किया गया है - मनोरंजन, वनस्पति, शोध एवं पौध पुरःस्थापन। उद्यान के एक हिस्से में स्थित लेक में नाव की सवारी की जा सकती है।