शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

मैं बेचारा चैटिंग के बोझ का मारा !!!!


चैटिंग 

           आज जब दुनिया तकनीकी कारणों से सिमटती जा रही है, लोग एक दूसरे से उतने ही दूर होते जा रहे हैं। एक वक्त था जब हम एक दूसरे से मिलने के लिए बेताब रहते थे और मिलने का कोई न कोई बहाना ढूंढते रहते थे। आज मोबाइल फोन ने  हमारा मिलना-जुलना एक तरीके से तक़रीबन ख़त्म कर दिया है।  चैटिंग मैसेंजरों ने फोन  कॉल्स की जगह लेनी शुरू कर दी और आज तो यह आलम है कि अगर फ़ोन पर बात करते हुए किसी का नंबर या कोई और व्यौरा मांग लें या लिखने को बोल दें, तो यही सुनने  को मिलता है "यार व्हाट्सऐप  कर देता हूँ या कर दे ना, लिख नहीं सकता"। व्हाट्सऐप जैसे चैटिंग ऎप ने तो हमारे प्राइवेसी को ही जैसे  ख़त्म कर दिया है। व्हाट्सऐप  मेसेंजर का विकास करते वक्त यह किसी ने नहीं सोचा होगा कि उनका ये ऎप लोगों के  प्राइवेसी को ही एक दिन ख़त्म कर देगा।









         

          हम व्हाट्सऐप जैसे ऐप पर इतना निर्भर हो चुके हैं कि हमारे रिश्तों की डोर भी अब व्हाट्सऐप के  उपयोग पर टिक गयी है। वैवाहिक जीवन भी इससे अछूता नहीं है। विवाहित हो या अविवाहित, बच्चे हों या जवान, अधेड़ उम्र हो या बूढ़े, सभी  व्हाट्सऐप पर व्यस्त देखे जा सकते हैं। समय का तो अब लोगों को जैसे ध्यान ही नहीं रहा। छोटे शहरों का तो मालूम नहीं लेकिन महानगरों में तो बुरा हाल है। बच्चे, जवान, बूढ़े सभी को, यहाँ तक की सड़क पार करते हुए भी, चैट करते देखा जा सकता है। इस बात की भी उन्हें ध्यान नहीं रहती कि उनकी जरा सी असावधानी की वजह से सड़क पर कोई बड़ा हादसा हो सकता है। उनके इस गैर-जिम्मेदार हरकत से उनकी या किसी और की जान जा सकती है या फिर किसी को घातक चोट पहुँच सकती है। वाहन-चालक हार्न बजाते रहते हैं लेकिन चैटिंग में मशगूल लोगों के ऊपर उसका कोई असर पड़ता हुआ नहीं दीखता। उल्टा वाहन-चालक को ही दोषी ठहरा दिया जाता है - देखकर नहीं चला सकते, अंधे हो क्या, वगैरह-वगैरह जूलमों से नवाज दिया जाता है। कई मौकों पर तो वाहन-चालकों को भी  वाहन चलाते वक्त मैसेज करते हुए  देखा जा सकता है।  
          



      हालात यूँ कि सड़क तो सड़क, अब घर के अंदर भी आप सुरक्षित नहीं हैं। अब तो  रातों को आराम से सोना भी दूभर होता जा रहा है।  घर में बच्चे हैं, वो अपने दोस्तों के साथ देर रात तक व्हाट्सऐप पर लगे  रहते हैं। पति-पत्नी के अपने  दोस्त हैं, अपने ग्रुप हैं।  अगर किसी एक को नींद नहीं आ रही होती है, तो समय का भी ध्यान रखने की आवश्यकता महसूस नही होती और  बस  मैसेज भेज  देते हैं, इस  उम्मीद  में कि अगर कोई ऊल्लू  उनकी तरह जाग रहा हो तो चैट करते हैं, समय कट जाएगा। उनका तो समय कट जाएगा, पर दूसरे का क्या ? इतना भी सोचने की जहमत नहीँ उठाते कि उनके चैटिंग की वजह से किसी दूसरे की नींद ख़राब हो सकती है। 



            अगर  पति अपने पत्नी को या फिर पत्नी अपने पति को देर रात तक चैट करने से मन करे, तो  वह दकियानूस, पुराने ख्यालों वाला, जुल्मी और  न जाने क्या-क्या विशेषताएं गिना दी जाती हैं। हालात ऐसे कि कोई यह समझने को राजी नहीं है कि उनके इस हरकत की वजह से दुसरों की नींद ख़राब होती  है। आप गहरी नीँद में सो रहे होते हैं और अचानक आपके फोन पर मैसेज नोटिफिकेशन्स आने शुरू हो जाते हैं। फोन की तुन-तुन या बीप की आवाज़ से  आपकी अच्छी-भली नींद खुल जाती है। आप किसी से यह आग्रह करें कि देर रात को मैसेज न करे इससे नीँद में व्यवधान पड़ता है, तो उल्टा आपको नसीहत दे दी जाती है कि आपके फोन में "Mute" की सुविधा है, आप अपना फोन "Mute" कर दिजिए या फिर आप ग्रुप छोड़ सकते हैं। यानि हम तो मैसेज करेंगे, अगर आपको तकलीफ हो रही है तो यह आपकी परेशानी है  और आप खुद इसका निदान ढूँढिये। 
     मुश्किल यह है कि आजकल इस तरह के गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार शिक्षित वर्ग के लोग कर रहे हैं। उन्हें समझाना भी मुश्किल है क्योंकि उन्हें लगता है कि वो तो पढ़े-लिखे  हैं और  वो कैसे गलत  हो सकते / सकती हैं। और अगर शिक्षित व्यक्ति अपना दिमाग का दरवाजा बंद कर दे, फिर तो भगवान भी उसके सामने घुटने टेक दे आम इंसान की क्या विसात । 
        मोबाइल फोन के आने के बाद से तो वैसे ही लोगों में दूरियां बढ़ने लगी थीं और मिलने-जुलने को फोन पर वार्तालाप ने जगह ले लिया था।  अब जब से चैटिंग प्रचलन में आया है लोग अब चैटिंग के जरिये ही जुड़े रहना पसंद करने लगे हैं।  हमारा सामाजिक  दायरा और भी सिकुड़ता जा  रहा है।





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