यात्रा
भाग -2
सुरक्षा के दृष्टि से भारत के कुछ पर्यटन स्थल जैसे कश्मीर (आतंकी छोड़कर), लद्दाख, हिमाचल के सुदूर इलाके, उत्तर-पूर्व राज्यों को विदेशी शैलानी ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं और वहां वह अकेले भ्रमण के लिए निर्भय चले जाते हैं। अगर हम इन राज्यों में चले जाएं तो हमें कई सारे विदेशी शैलानियाँ साइकिल पर यात्रा करते दिख जाते हैं. साइकिल से यात्रा करने के अनेक फायदे हैं - धन की बचत, स्वाथ्य लाभ, प्रकृति और आसपास की सुंदरता को ज़्यादा भली-भाँति महसूस करना, साइकिल द्वारा ऐसे राह / मार्ग पर पहुँचा जा सकता है जहाँ वाहन का पहुँच पाना मुश्किल है, इत्यादि। साइकिल द्वारा पर्यटक स्थलों का भ्रमण और साइकिल द्वारा भारत दर्शन जहाँ विदेशी शैलानियों में अत्यंत प्रचलित है, वहीँ स्वदेशी शैलानियों में पर्यटन का यह तरीका अभी आम प्रचलन में नहीं आया है। कुछ हिंदुस्तानी नौजवानों को साइकिल पर भ्रमण करते देखा जा सकता है, वहीँ विदेशी शैलानियों में हर उम्र के लोगों को साइकिल से भ्रमण करते हुए देखा जा सकता है। अभी हाल ही में मैंने एक विदेशी महिला, जिनकी उम्र तक़रीबन ५५ वर्ष होगी, को मनाली-लेह जैसे कठिन एवं दुर्गम मार्ग पर साइकिल से पर्यटन करते पाया। उनके और उनके साथी सैलानी में तक़रीबन एक किलोमीटर का फासला था। विदेशी शैलानियों की तर्ज पर अब हिन्दुस्तानियों में भी सुदूर एवं दुर्गम मार्गों पर पर्यटन के लिए साइकिल धीरे-धीरे प्रचलित होने लगा है।
इसी वर्ष अगस्त-सितम्बर माह में मैं पर्यटन हेतु सड़क मार्ग से दिल्ली से निकलकर श्रीनगर, लद्दाख, मनाली होता हुआ दिल्ली वापस आया था। अपने ११ दिवसीय यात्रा के दौरान मैंने श्रीनगर-लेह राजमार्ग और लेह-मनाली राजमार्ग पर स्वदेशी एवं विदेशी शैलानीयों को साइकिल द्वारा इन दुर्गम पहाड़ी रास्तों को पार करते पाया। यह अलग बात थी कि साइकिल सवार शैलानियों में स्वदेशी-विदेशी शैलानी २०:८० के अनुपात में दिखे। जहाँ स्वदेशी शैलानियों में मुझे सिर्फ पुरुष दिखे (उम्र २५-३० वर्ष), वहीँ विदेशी शैलानियों में १८-५५ वर्ष के बच्चे और महिलाएं भी थीं। एक और बड़ा अंतर जो इन शैलानियों में देखने को मिला वो यह था कि जहाँ विदेशी शैलानीयों का सारा आवश्यक सामान जैसे कपडे, खाने-पीने के वस्तु, टेंट, वगैरह उनके साइकिल पर ही देखा जा सकता था, वहीँ साइकिल सवार नौजवान भारतीय शैलानियों का सारा सामान उनके साथ चल रहे एक अलग वाहन पर था। कहने का तात्पर्य यह है कि हम कहने को साइकिल पर सवार तो हुए हैं लेकिन अपने आराम का भी साधन साथ लिए चल रहे हैं.
विदेशी शैलानी का एक ऐसा ही चार सदस्यों का समूह (जिसमें १८ वर्ष का एक बच्चा, तक़रीबन ३७-३८ वर्ष की एक महिला और तक़रीबन ४० वर्ष के दो पुरुष थे) मुझे लद्दाख के एक सुदूर एवं सुनसान सड़क पर मिले। उनसे वार्तालाप से ज्ञात हुआ कि चारों व्यक्ति स्पेन के रहने वाले हैं और छह माह के लिए साइकिल द्वारा पर्यटन हेतु अपने देश से निकले हुए हैं. वो तीन माह के लिए भारत में रहने वाले हैं और इस दौरान श्रीनगर, लद्दाख, हिमाचल, सिक्किम घूमने के पश्चात उनका नेपाल जाने का इरादा है.
क्या हम हिंदुस्तानी इन विदेशी शैलानियों की भांति पर्यटन कर सकते हैं? कहने का तात्पर्य यह है कि इच्छा रखते हुए भी हम भारतीय इन विदेशी शैलानियों की भांति एक साथ छह माह का पर्यटन का कल्पना भी नहीं कर सकते। आम हिंदुस्तानी के पास ना तो इतना सामर्थ्य है और अगर सामर्थ्य है भी तो एक साथ इतनी लंबा अवकाश मिलने की संभावना नगण्य है।साथ ही हमारी सामाजिक संरचना भी ऐसी है कि हम हिंदुस्तानी सिर्फ पर्यटन हेतु इतने लंबे वक्त तक अपने पारीवारिक आवश्यकताओं को नजरअंदाज भी नहीं कर सकते।
क्रमशः
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