शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

कश्मीर भ्रमण - गुलमर्ग

गुलमर्ग भ्रमण 

अपने श्रीनगर प्रवास के अगले दिन मैंने अपनी गाड़ी निकाली और निकल पड़ा गुलमर्ग के पहाड़ियों का आनंद उठाने। Dal Lake से तक़रीबन ५५ km दूर गुलमर्ग की पहाड़ियों पर ९० मिनट में आराम से पहुंचा जा सकता है हालाँकि समय इस पर भी निर्भर करेगा कि आप श्रीनगर किस वक्त छोड़ रहे हैं। प्रातः ८ बजे के बाद श्रीनगर शहर के अंदर अत्यधिक ट्रैफिक की वजह से कई चौराहों पर जाम लगने का अंदेशा रहता है जिससे ९० मिनट की जगह १५०-१८० मिनट तक लग सकता है। आखिर के तक़रीबन ७-८ km पहाड़ों पर घुमावदार चढ़ाई चढ़नी होती है। 


गुलमर्ग पहाड़ी रिसोर्ट और शरद ऋतू में पहाड़ों के ढलान बर्फ से ढके होने के कारण स्कीईंग, स्लेजिंग और स्नोबोर्डिंग जैसे बर्फ के खेल के लिए प्रसिद्ध है। गुलमर्ग भारत में सबसे ऊंचाई पर स्थित १८ होल गोल्फ क्लब के लिए भी प्रसिद्ध है। 



गुलमर्ग को वहां के गरेडियों द्वारा रखा गया पुराने नाम "गौरीमर्ग" से जाना जाता था। ऐसा मानना है कि गुलमर्ग की खोज १६वीं सदी में सुल्तान युसूफ शाह ने की थी और गुलमर्ग मुग़ल बादशाह जहांगीर का चहेता रिसोर्ट था। अंग्रेजों ने गुलमर्ग को स्की रिसोर्ट की तरह स्थापना की और उसके बाद से गुलमर्ग विश्व में स्नो स्कीईंग के लिए अपनी स्थान बना चूका है। मध्य दिसंबर से मध्य मार्च तक गुलमर्ग की खूबसूरत पहाड़ियां बर्फ की मोटी चादर से ढंकी होती है और देशी-विदेशी शैलानी स्कीइंग का भरपूर आनद उठाते हैं। प्रशिक्षित स्की गाइड की देख-रेख में स्कीइंग सिखने के लिहाज से गुलमर्ग के पहडियों की ढलान नवसिखुओं और मध्यम श्रेणी के स्किकर्ता के लिए अति उपयुक्त समझा जाता है।  


गुलमर्ग के अनेक आकर्षणों में से सबसे अधिक आकर्षण वहां पर स्थित दो चरणों में गोंडोला केबल कार की सवारी है जो शैलानियों को समुद्री तल से १४००० फ़ीट की ऊंचाई पर अफरवात पर्वत श्रेणी लेकर जाता है। 



दूसरे चरण के ऊंचाई पर पहुँचने के पश्चात मेरे साथ आए गाइड ने मुझे और ऊपर चलने की सलाह दी जो बड़े-बड़े पत्थरों के बीच से होता हुआ गुजरता था। हम तकरीबन और १५०० फ़ीट ऊंचाई पर पैदल पत्थरों के बीच से होते हुए चढ़ने में सफल हुए। पत्थरों के बीच से चढ़ाई चढ़ने का एक अलग ही अनुभव था जिसे शब्दों में बयां करना नामुमकिन है। 




इस स्थान से तक़रीबन २km की दुरी पर पाकिस्तान अधिग्रहित कश्मीर के सीमा पर पाकिस्तान रेंजर्स की टुकड़ी तैनात थी जो उस ऊंचाई से साफ़-नजर आ रहे थे। हमें बताया गया कि तक़रीबन १ km और ऊपर चढ़ने के बाद अफरवात पर्वत के मध्य स्थित एक खूबसूरत लेक देखा जा सकता है। परंतु उस समय पाकिस्तान रेंजर्स और भारतीय सेना के बीच चल रही गोलीबारी की वजह से हम आगे जाने का खतरा नहीं उठा सकते थे और हमें वापस लौटना पड़ा।  
गोंडोला के दूसरे चरण पर वापस पहुँच कर वहां से तक़रीबन दूसरी दिशा में १ km की पैदल चढ़ाई चढ़ने के बाद एक बर्फ के पिघलने से बहती झरने का लुत्फ़ उठाया जा सकता है। और वहीँ से कुछ और ऊंचाई पर जाने के बाद अपने तरह का एकमात्र वृक्ष "पेपर ट्री" देखने को मिलता है। इस वृक्ष का छाल सफ़ेद रंग का है और इतना चिकना है कि हम उसके उपर कलम से कागज की तरह लिखाई कर सकते हैं और इसी कारण इस वृक्ष को "पेपर ट्री" कहते हैं। 



महारानी मंदिर उर्फ़ मोहिनेश्वर शिवालय के नाम से प्रख्यात शिव-पार्वती की मंदिर भी हिन्दुओं के लिए गुलमर्ग का एक आकर्षण केंद्र है। इस मंदिर का निर्माण महाराजा हरी सिंह की सहचरी मोहिनी बाई सिसोदिया ने करवाया था। यह मंदिर राज्य के डोगरा राजा का राजकीय मंदिर के रूप में भी उपयोग आता है।